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Top 18 Bhagwat Gita Quotes in Hindi | भगवत गीता के उपदेश - Taka Deals

Top 18 Bhagwat Gita Quotes in Hindi | भगवत गीता के उपदेश

Published by Adarsh on

भगवद गीता के उपदेश हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण ग्रंथ में से एक हैं और इसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच जो दिये गए उपदेश हैं, वे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह उपदेश अर्जुन के मनोबल को बढ़ाने, जीवन के मार्ग पर मार्गदर्शन करने, और आत्मा के अद्वितीय स्वरूप के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए हैं।

प्रस्तावना:

भगवद् गीता का परिचय:

भगवद् गीता हिंदू धर्म का एक प्राचीन और सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। महाभारत के भीष्म पर्व में वर्णित, यह ग्रंथ एक संवाद है भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच, जो कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में हुआ।

इसका महत्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

गीता को दुनिया भर में एक दार्शनिक ग्रंथ के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह ग्रंथ जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालता है और एक बेहतर जीवनशैली की ओर मार्गदर्शन करता है।

गीता का संदेश:

कर्मयोग:

कर्मयोग का संदेश है कि मनुष्य को अपने कर्मों को बिना फल की इच्छा के करना चाहिए। कर्म ही जीवन का आधार है और उसका फल भगवान के हाथ में है।

ज्ञानयोग:

ज्ञान की महत्वता को गीता में विशेष स्थान दिया गया है। यह सिखाती है कि ज्ञान से ही मनुष्य अज्ञानता के अंधकार से निकल सकता है।

भक्तियोग:

भक्तियोग के माध्यम से, गीता भक्ति को मोक्ष का मार्ग बताती है। यह सिखाती है कि भक्ति के द्वारा ही मनुष्य भगवान के निकट जा सकता है।

कुछ महत्वपूर्ण भगवद गीता के उपदेश निम्नलिखित हैं:

धर्म का पालन करें: गीता में धर्म का महत्व बताया गया है, और यह सिखाया गया है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

  • कर्मयोग: गीता में कर्मयोग का उपदेश दिया गया है, जिसमें कर्म करते समय फल की आकांक्षा किए बिना कार्य करने की सलाह दी जाती है।
  • भक्तियोग: भगवद गीता में भक्तियोग का उपदेश भी है, जिसमें भगवान के प्रति भक्ति का महत्व बताया गया है।
  • ज्ञानयोग: गीता में आत्मा के अद्वितीय स्वरूप के प्रति ज्ञान का महत्व और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का उपदेश भी है।
  • समर्पण: भगवद गीता में भगवान के प्रति समर्पण और आत्मनिर्भरता की महत्वपूर्ण बातें हैं।

Bhagwat Gita Quotes in Hindi | भगवत गीता के उपदेश

भगवद गीता के कुछ प्रमुख उपदेशों का हिंदी में अनुभव करें:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

 मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।”

इसका अर्थ है कि आपका कर्म केवल आपके कर्मभूमि पर होता है, फलों का आकांक्षा नहीं करना चाहिए।

“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।

 सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।”

यह कहता है कि कर्म में योग्य रूप से लग जाओ और फल की आकांक्षा त्याग दो।

“दूर्भाग्यवतां लोभात्मनः सततं वृद्धिरेकदासी।

 कामरूपं दुःखत्यजं प्राप्यते नान्यस्ति मानवे।।”

इसका अर्थ है कि लोभी लोग कभी भी तृप्त नहीं होते, क्योंकि उनका लाभ कभी भी पूर्ण नहीं होता।

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

 अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”

भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, जब धर्म कमजोर होता है और अधर्म बढ़ जाता है, तो वह स्वयं को प्रकट करते हैं।

“योगक्षेमं वहाम्यहम्।”

इस उपदेश में भगवान का आशीर्वाद है, जिसमें वह योगक्षेम (सुख-शांति) की रक्षा करते हैं।

ये उपदेश भगवद गीता के कुछ प्रमुख अंश हैं जो जीवन के मार्गदर्शन के रूप में लिए जा सकते हैं। गीता में और भी कई महत्वपूर्ण उपदेश हैं, जो जीवन को संजीवनी देते हैं।

“द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।

 क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।”

इस उपदेश में भगवान बताते हैं कि दो प्रकार के पुरुष होते हैं: क्षर (मर्त्य) और अक्षर (अमर्त्य)।

“अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।

 सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।”

इसका अर्थ है कि आप अगर सबसे बड़े पापी भी हो, तो ज्ञान की नौका के साथ ही सभी पापों से पार कर सकते हैं।

“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

 तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।”

इसका अर्थ है कि जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धारी पार्थ अर्जुन होते हैं, वहाँ श्री, विजय, भूति और निति का स्थान होता है।

“मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।

निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव।।”

इसका अर्थ है कि मेरे कर्म करने वाला, मेरे परम भक्त, संग त्यागने वाला, सभी जीवों में शोक-द्वेष न करने वाला व्यक्ति मुझे प्राप्त होता है, अर्जुन।

ये थे कुछ प्रमुख भगवद गीता के उपदेश जो हमें जीवन के मार्गदर्शन करते हैं। गीता के शिक्षाएँ जीवन में सही मार्ग पर चलने में मदद करती हैं और आत्मविकास में मदद करती हैं।

“अहिंसा परमो धर्मः धृतिः क्षमा दमः शौचम्।

आनृशंस्यं दयाबलं मार्दवं ह्रीराचापलम्।।”

इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धैर्य, क्षमा, दम, शौच, और अन्य गुण भी महत्वपूर्ण हैं।

“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।”

इसका अर्थ है कि जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धारी पार्थ अर्जुन होते हैं, वहाँ श्री, विजय, भूति, और निति का स्थान होता है, जो हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होते हैं।

“अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।

जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।”

इस श्लोक में श्रीकृष्ण अपनी परम प्रकृति को और उससे पैदा होने वाले सभी जीवों को बताते हैं, जिनसे यह सारा जगत् धार्य होता है।

“यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्।

तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्।।”

इसका अर्थ है कि वह सुख जो प्रारंभ में विष के समान लगता है, लेकिन अंत में अमृत के समान होता है, वह सात्त्विक सुख कहलाता है, और वह आत्मबुद्धि के प्रसाद से प्राप्त होता है।

“आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।”

इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि वह सभी देवताओं का स्रोत हैं, जैसे कि सूर्य, मरीचि, वायु, और चंद्रमा।

“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।”

इसका अर्थ है कि तू सभी धर्मों को छोड़कर सिर्फ मेरी शरण में आ जा, मैं तुझे सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा, तू चिंता मत कर।

“सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।।”

इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि सभी जीवों की मात्र माता नहीं, बल्कि मूल में उनका आदि कारण और पिता भी हैं।

जब हम भगवत गीता के श्लोकों का हिंदी में विवरण देते हैं, तो हमें यह समझ मिलता है कि ये उपदेश और सन्देश हमारे जीवन में कैसे मदद कर सकते हैं:

“कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्मयः।”

इस श्लोक का अर्थ है कि एक योगी उस समय तक कर्म करता है जब वह कर्मों की नीति को समझता है और कर्मों के परिणामों में आसक्ति नहीं रखता।

“अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।”

इस श्लोक का संदेश है कि मरण के समय हमें भगवान की याद आनी चाहिए और उसके ध्यान में मरना चाहिए, ताकि हम मोक्ष प्राप्त कर सकें।

ये भगवत गीता के उपदेश हैं जो हमें जीवन में मार्गदर्शन करते हैं और सफल, खुशहाल जीवन की दिशा में मदद करते हैं। इन उपदेशों का पालन करने से हम आत्मा के साथ जुड़े रहते हैं और धार्मिकता, ध्यान, और समझदारी की ओर बढ़ते

समापन:

गीता के संदेश का सारांश:

भगवद् गीता ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन ज्ञान प्रदान किया है। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखा जाए, कर्म को कैसे महत्व दिया जाए, और किस प्रकार से अपने दैनिक जीवन में ज्ञान, कर्म और भक्ति को अपनाया जाए। इसके संदेश न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए बल्कि समाज के समग्र विकास के लिए भी प्रेरणादायक हैं।

गीता का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर प्रभाव:

गीता का ज्ञान व्यक्तिगत जीवन में आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है, जिससे एक व्यक्ति अपने आंतरिक स्वभाव को पहचान सकता है और अपने कर्मों को उसी अनुसार ढाल सकता है। सामाजिक जीवन में इसके सिद्धांत उत्तरदायित्व, सहिष्णुता और समर्पण को बढ़ावा देते हैं। गीता हमें यह भी सिखाती है कि सभी मनुष्यों के बीच सामाजिक सद्भाव और एकता कैसे स्थापित की जाए।

गीता के आध्यात्मिक संदेश की आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता:

आज के युग में जब मनुष्य आध्यात्मिकता से दूर भाग रहा है, गीता का संदेश उसे वापस आध्यात्मिकता की ओर लाने का काम करता है। गीता हमें यह भी बताती है कि आधुनिकता के इस युग में भी कैसे हमारी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान हमारे लिए मार्गदर्शक का काम कर सकते हैं।

Categories: Lifestyle

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